August 12, 2025

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जन्माष्टमी 2025: 15 या 16 अगस्त? जानें श्रीकृष्ण पूजा का शुभ मुहूर्त और पूजन विधि

 

भोपाल 

 जन्माष्टमी का त्योहार हर साल भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है. मान्यता है कि भाद्रपद महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को रोहिणी नक्षत्र में रात के 12 बजे भगवान कृष्ण का जन्म हुआ था. इस बार यह पावन पर्व 16 अगस्त को बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाएगा. यह दिन भगवान कृष्ण के बाल्यावस्था के स्वरूप को श्रद्धा से याद करने और उनकी पूजा-अर्चना का अवसर होता है. इस दिन भक्त व्रत रखते हैं और पूरी भक्ति के साथ श्रीकृष्ण की पूजा करते हैं.

कृष्ण जन्माष्टमी 2025 शुभ मुहूर्त

कृष्ण जन्माष्टमी की अष्टमी तिथि 15 अगस्त को रात 11 बजकर 49 मिनट पर शुरू होगी और तिथि का समापन 16 अगस्त को रात 9 बजकर 34 मिनट पर होगा. 

जन्माष्टमी का पूजन मुहूर्त 16 अगस्त को रात 12 बजकर 4 मिनट पर शुरू होकर 12 बजकर 47 मिनट पर समाप्त होगा. जिसकी अवधि कुल 43 मिनट की रहेगी.    

रोहिणी नक्षत्र प्रारंभ 

इस साल रोहिणी नक्षत्र 17 अगस्त को सुबह 4 बजकर 38 मिनट पर शुरू होगा और यह 18 अगस्त को 3 बजकर 17 मिनट कर रहेगा. 

कृष्ण जन्माष्टमी पूजा विधि 

जन्माष्टमी पूजा की शुरुआत सूर्योदय पूर्व स्नान से होती है. साफ सुथरे कपड़े पहनकर भगवान कृष्ण के प्रतिमा या चित्र की गंगा जल और दूध से अभिषेक किया जाता है, उन्हें नए वस्त्र पहनाकर फूल, फल, मिठाई व मिश्री से भोग लगाया जाता है. विशेष रूप से रात को बारह बजे कृष्ण जन्म के समय उनकी पूजा और आरती की जाती है. इस समय भक्तगण पूरी श्रद्धा के साथ भगवान की स्तुति करते हैं. व्रत इस प्रकार रखा जाता है कि दिन भर अनाज से परहेज किया जाता है और पारण में फल, कुट्टू या सिंघाड़े के आटे से बने व्यंजन खाए जाते हैं.

जन्माष्टमी का महत्व 

जन्माष्टमी न केवल भगवान कृष्ण के जन्म की खुशियों को दर्शाता है, बल्कि जीवन में धर्म, नैतिकता और प्रेम के उच्च आदर्शों की भी प्रेरणा देता है. देशभर में इस पर्व को बड़े उत्साह और उमंग से मनाया जाता है, जिसमें झांकियों, भजन-कीर्तन और रासलीला की प्रस्तुतियां शामिल होती हैं.

जन्माष्टमी 2025 कथा 

पौराणिक कथा के अनुसार, मथुरा के अत्याचारी राजा कंस को भविष्यवाणी सुनकर डर लग गया कि देवकी का आठवां पुत्र उसे मारेगा. इसलिए उसने देवकी और उनके पति वासुदेव को जेल में बंद कर दिया तथा पहले सात बच्चों को मार डाला. जब आठवें पुत्र का जन्म होने वाला था, उस रात बिजली चमकी, ताले अपने आप खुल गए और भगवान कृष्ण का जन्म हुआ. वासुदेव ने श्रीकृष्ण को सुरक्षित गोकुल में नंद माता-पिता के यहां पहुंचाया, जबकि अपनी बेटी को कंस के हवाले किया. बाद में भगवान कृष्ण ने कंस का वध कर दंड दिया और अधर्म का अंत किया.