श्योपुर
भारत में सात दशक पहले विलुप्त हुए चीतों की आबादी को फिर से बसाने की परियोजना के तहत नामीबिया से लाकर मध्यप्रदेश के श्योपुर जिले स्थित कूनो राष्ट्रीय उद्यान में एक दिन पहले छोड़े गये आठों चीते इस उद्यान में अधिकांश समय अपने-अपने विशेष बाड़े में विचरण एवं आराम करते हुए नजर आये। इससे लगता है कि वे धीरे-धीरे अपने नये परिवेश के वातावरण में ढल रहे हैं।
इनकी निगरानी एवं अध्ययन कर रहे विशेषज्ञों ने बताया कि इसके अलावा, दूसरे दिन भी ये सभी चीते अपने नये बसेरे को बड़ी उत्सुकता से निहारते रहे और स्वस्थ एवं तंदुरूस्त दिखे।
उन्होंने कहा कि इन सभी को विशेष बाड़ों में एक महीने के लिए पृथक-वास पर रखा गया है और इन्होंने वहां रखा हुआ आज पानी भी पिया।
चीतों के जल्द रखे जाएंगे नाम
डीएफओ ने बताया कि वहां वे चीतल आदि दूसरे जानवरों का शिकार कर सकेंगे। उनके व्यवहार के अनुसार उनके नाम भी आने वाले समय में कूनो वन मंडल की ओर से रखे जायेंगे। फिलहाल चीतों का दीदार करने के लिए पर्यटकों के लिए कूनो में रोक रहेगी। यह बात दीगर है कि पर्यटक उनके दीदार के लिये बेसब्र हो रहे हैं. नामीबिया के चीते शनिवार को यहां लाकर छोड़े गए हैं।
भारत और नामीबिया के पशु चिकित्सक और विशेषज्ञ इन पर कड़ी नजर रख रहे हैं और एक महीने तक चलने वाले पृथक-वास की अवधि के दौरान उन्हें भैंस का मांस देने पर काम कर रहे हैं।
कूनो राष्ट्रीय उद्यान के संचालक उत्तम कुमार शर्मा ने बताया, ‘‘लोग मानते हैं कि तीन दिन बाद चीता खाता है। एक बार शिकार कर लेगा और उसे खाने के तीन दिन बाद ही चीता दोबारा खाता है। चीते रोजाना भोजन नहीं करते। दो दिन पहले नामीबिया से भारत के लिये रवाना होने से पहले उन्हें भैंस का मांस दिया गया था।’’
उन्होंने कहा कि उन्हें आज भोजन दिया जाएगा। जब उनसे सवाल किया गया कि कल चीते सहमे हुए दिख रहे थे, अब कैसे हैं, तो इस पर शर्मा ने कहा, ‘‘अब चीते सक्रिय हैं और उनका स्वास्थ्य ठीक है। वे अपनी दिनचर्या करते रहते हैं। इधर-उधर घूमते रहते हैं, बैठ जाते हैं, पानी पी लेते हैं।’’
उन्होंने कहा कि वे अपने नये परिवेश को जानने की कोशिश कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि इन चीतों को नामीबिया से ही नाम दिये गये हैं और हमने उनका नाम नहीं बदला है। फिलहाल हम उनके नाम बदलने पर विचार नहीं कर रहे हैं।
नामीबिया से विशेष विमान से लाए गए इन आठ चीतों को कूनो राष्ट्रीय उद्यान में 17 सितंबर की सुबह को छोड़ा गया, जिससे यह उद्यान पूरी दुनिया में सुर्खियों में आ गया है। इन आठ चीतों में से पांच मादा और तीन नर हैं।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं अन्य गणमान्य व्यक्तियों ने 1952 में भारत में विलुप्त हुए चीतों की आबादी को फिर से बसाने की परियोजना के तहत इस उद्यान के विशेष बाड़ों में छोड़ा और उस समय ये सहमे हुए नजर आ रहे थे। हालांकि, बाद में विचरण करने लगे थे।
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