जबलपुर
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण आदेश में कहा कि पुलिस भर्ती परीक्षा में आरक्षित वर्ग के मेरिटोरियस आवेदकों को उनकी पसंद यानी प्रथम वरीयता के आधार पर पदस्थापना का लाभ दिया जाए। न्यायमूर्ति मनिंदर सिंह भट्टी की एकलपीठ ने गृह विभाग और डीजीपी को निर्देश दिया है कि सुप्रीम कोर्ट के न्यायदृष्टांत के आधार पर याचिकाकर्ता के अभ्यावेदन पर विधि अनुसार निर्णय लिया जाए। इसके लिए 60 दिन की मोहलत दी गई है।
याचिकाकर्ता सागर निवासी लियाकत राजा खान की ओर से अधिवक्ता डीके त्रिपाठी व धर्मेंद्र पटेल ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि याचिकाकर्ता का पुलिस आरक्षक भर्ती परीक्षा 2016-17 में चयन हुआ था। आरक्षित वर्ग में उसे कट-आफ से अधिक अंक आए, इस कारण उसका नाम अनारक्षित वर्ग की सूची में डाल दिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने 1996 में सुनाए गए एक फैसले और 2021 में प्रवीण कुर्मी विरुद्ध मध्य प्रदेश शासन की अपील में दिए फैसले में यह स्पष्ट किया है कि यदि आरक्षित वर्ग के मेरिटोरियस उम्मीदवार के उसी वर्ग के कट-आफ से अधिक अंक आते हैं तो उसे अनारक्षित वर्ग में शामिल नहीं करके उसके ही वर्ग में प्रथम वरीयता के आधार पर पोस्टिंग दें। उक्त फैसले के आधार पर याचिकाकर्ता ने गृह विभाग और डीजीपी को अभ्यावेदन दिया, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं होने पर हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई।
हाई कोर्ट ने तर्क सुनने के बाद राहतकारी आदेश पारित कर दिया। इससे पूर्व भी इसी तरह के आदेश पारित हो चुके हैं। इससे आरक्षित वर्ग के आवेदकों को राहत मिली है। पूर्व में पसंद की पदस्थापना के आदेश तक जारी हो चुके हैं। इससे साफ है कि पूर्व में मनमानी की गई थी। हाई कोर्ट ने गलती पाकर ही राहत दी है। इससे दूसरे आवेदकों को हिम्मत मिली आैर वे न्याय लेने चले आए। कोर्ट का रवैया इस मामले में लचीला है।
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