
नई दिल्ली
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 31 अगस्त को चीन के तियानजिन में होने वाले शंघाई सहयोग संगठन (SCO) शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने जाएंगे। यह सात साल में उनकी पहली चीन यात्रा होगी। इस यात्रा को भारत-चीन संबंधों को सामान्य करने की दिशा में एक और कदम माना जा रहा है, खासकर 2020 में लद्दाख में दोनों देशों के बीच सैन्य तनाव खत्म होने के बाद। सूत्रों के मुताबिक, मोदी इस यात्रा के साथ जापान भी जाएंगे, जहां वे जापानी प्रधानमंत्री शिगेरु इशिबा के साथ वार्षिक द्विपक्षीय शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेंगे।
मोदी ने आखिरी बार 2018 में चीन का दौरा किया था, जब वे वुहान में राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ अनौपचारिक बैठक और किंगदाओ में एससीओ शिखर सम्मेलन में शामिल हुए थे। 2020 में लद्दाख के गलवान घाटी में हिंसक झड़पों के बाद दोनों देशों के रिश्ते बहुत खराब हो गए थे। हाल ही में 21 अक्टूबर 2024 को दोनों देशों के बीच सैन्य तनाव खत्म करने पर सहमति बनी, जिसके बाद रूस के कजान में मोदी और शी की मुलाकात हुई। इस दौरान दोनों नेताओं ने रिश्तों को सामान्य करने और सीमा विवाद पर बातचीत के लिए कई तंत्रों को फिर से शुरू करने पर सहमति जताई।
द्विपक्षीय मुलाकात की संभावना
पीएम मोदी की इस यात्रा में शी जिनपिंग के साथ उनकी द्विपक्षीय मुलाकात की संभावना है। इस मुलाकात में सीमा पर तनाव कम करने, डायरेक्ट उड़ानों की बहाली, बॉर्डर व्यापार शुरू करने और लोगों के बीच संपर्क बढ़ाने जैसे मुद्दों पर चर्चा हो सकती है। हाल के महीनों में दोनों देशों के विदेश और रक्षा मंत्रियों के बीच कई बैठकें हुई हैं। इसके अलावा, कैलाश मानसरोवर यात्रा और चीनी नागरिकों के लिए पर्यटक वीजा जैसे कुछ भरोसा बढ़ाने वाले कदम भी उठाए गए हैं।
चीन की कुछ गतिविधियों पर चिंता
हालांकि, भारत को अभी भी चीन की कुछ गतिविधियों पर चिंता है, जैसे ब्रह्मपुत्र नदी पर दुनिया का सबसे बड़ा हाइड्रोपावर बांध बनाने की शुरुआत और भारत-पाकिस्तान तनाव के दौरान पाकिस्तान को चीन का समर्थन। विदेश मंत्री एस जयशंकर ने जुलाई में बीजिंग में चीनी विदेश मंत्री वांग यी से मुलाकात में इन मुद्दों को उठाया था। उन्होंने कहा था कि दोनों देशों को रिश्तों को बेहतर करने के लिए सीमा पर तनाव कम करने और व्यापार में रुकावटों को दूर करने की जरूरत है।
इससे भारत के लिए क्या बदलेगा, क्या बढ़ेगा ट्रंप पर दबाव?
उनकी यह यात्रा वार्षिक शिखर सम्मेलन के लिए जापान की यात्रा के साथ होगी. यदि यह यात्रा होती है तो यह 2018 के बाद और पूर्वी लद्दाख सीमा गतिरोध के बाद पीएम मोदी की पहली चीन यात्रा होगी. हालांकि प्रधानमंत्री मोदी ने अक्टूबर 2024 में कजान में ब्रिक्स शिखर सम्मेलन के दौरान चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाकात की थी. अक्टूबर 2019 के बाद से उनकी पहली सुनियोजित बैठक भी भारत और चीन द्वारा अपनी विवादित सीमा पर गश्त करने के समझौते पर पहुंचने के कुछ ही दिनों बाद हुई थी. शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन 10 देशों का यूरेशियन सुरक्षा और राजनीतिक समूह है. चीन, रूस, भारत, ईरान, कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, पाकिस्तान, ताजिकिस्तान, उज्बेकिस्तान और बेलारूस इसके सदस्य हैं.
अक्टूबर 2024 में कजान में मिले थे मोदी- जिनपिंग
अक्टूबर 2024 की बैठक के दौरान पीएम मोदी ने चीनी राष्ट्रपति से कहा था कि सीमा पर शांति और स्थिरता बनाए रखना उनकी प्राथमिकता बनी रहनी चाहिए. बैठक में उन्होंने कहा, “यह पांच वर्षों के बाद हमारी पहली औपचारिक बैठक है. हम सीमा पर हुए समझौतों का स्वागत करते हैं. सीमा पर शांति और सौहार्द बनाए रखना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए. आपसी विश्वास, आपसी सम्मान और आपसी संवेदनशीलता हमारे संबंधों का आधार बने रहने चाहिए. मुझे विश्वास है कि हम खुले दिल से बातचीत करेंगे और हमारी चर्चाएं रचनात्मक होंगी.” इस बीच शी जिनपिंग ने कहा कि भारत और चीन के लिए अधिक संवाद और सहयोग करना मतभेदों और असहमतियों को उचित ढंग से संभालना महत्वपूर्ण है. उन्होंने कहा कि दोनों देशों के लिए यह भी महत्वपूर्ण है कि वे अपनी अंतरराष्ट्रीय जिम्मेदारी निभाएं तथा विकासशील देशों की ताकत और एकता को बढ़ावा देने के लिए एक उदाहरण स्थापित करें.
जून में बनी थी वार्ता के लिए सहमति
इस वर्ष जून माह के प्रारंभ में,भारत और चीन ने ट्रेड और इकनॉमिक्स के क्षेत्र में चिंता के विशिष्ट मुद्दों को हल करने के लिए वार्ता करने पर सहमति व्यक्त की थी. क्योंकि वे वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के लद्दाख क्षेत्र में सैन्य गतिरोध की समाप्ति के बाद द्विपक्षीय संबंधों को स्थिर और पुनर्निर्माण करने के लिए काम कर रहे थे. यह निर्णय विदेश सचिव विक्रम मिस्री और चीनी उप विदेश मंत्री सुन वेइदोंग के बीच नई दिल्ली में हुई बैठक के बाद लिया गया. दोनों पक्षों ने सीधी हवाई सेवाओं को फिर से शुरू करने के प्रयासों में तेजी लाने पर सहमति व्यक्त की, जो 2020 से निलंबित हैं.
इस वर्ष कैसे रहे भारत-चीन संबंध
जून में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने एससीओ रक्षा मंत्रियों की बैठक की संयुक्त विज्ञप्ति पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया था. क्योंकि इसमें आतंकवाद से संबंधित चिंताओं का उल्लेख नहीं किया गया था. एचटी की रिपोर्ट के अनुसार राजनाथ सिंह ने चीन के किंगदाओ में बैठक में भाग लिया, लेकिन उन्होंने संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर नहीं किए. क्योंकि इसमें 22 अप्रैल के पहलगाम आतंकी हमले का उल्लेख नहीं था. लेकिन बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी द्वारा पाकिस्तान में जाफर एक्सप्रेस अपहरण का उल्लेख था. ऑपरेशन सिंदूर के तहत भारत के साथ चार दिनों तक चले संघर्ष के दौरान चीन ने पाकिस्तान का पुरजोर समर्थन किया था.
चीन ने काफी दिनों बाद पहलगाम हमले की निंदा की
हालांकि जब अमेरिका ने पहलगाम हमले की जिम्मेदारी लेने वाले लश्कर-ए-तैयबा के प्रतिनिधि संगठन द रेजिस्टेंस फ्रंट (टीआरएफ) को विदेशी आतंकवादी संगठन (एफटीओ) घोषित किया तो चीन ने 22 अप्रैल के हमले की निंदा की. चीन ने आतंकवाद से निपटने तथा स्थिरता बनाए रखने के लिए मजबूत क्षेत्रीय सहयोग की आवश्यकता पर बल दिया. चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लिन जियान ने कहा, “चीन सभी प्रकार के आतंकवाद का दृढ़ता से विरोध करता है और 22 अप्रैल को हुए आतंकवादी हमले की कड़ी निंदा करता है. चीन क्षेत्रीय देशों से आतंकवाद-रोधी सहयोग बढ़ाने और संयुक्त रूप से क्षेत्रीय सुरक्षा और स्थिरता बनाए रखने का आह्वान करता है.”
हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि यह यात्रा मुख्य रूप से एससीओ शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए है. भारत या चीन की तरफ से अभी तक पीएम मोदी की किसी द्विपक्षीय बैठक की आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है. लेकिन कूटनीतिक हलकों में इसकी प्रबल संभावना है. यह यात्रा भारत-चीन संबंधों में स्थिरता लाने और विश्वास बहाल करने की दिशा में एक सकारात्मक कदम हो सकती है.
सीमा विवाद पर संवाद की बहाली: गलवान संघर्ष के बाद से दोनों देशों के संबंधों में तनाव बना हुआ है. हालांकि दोनों देशों के नेताओं की पिछली मुलाकात ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में हुई थी, लेकिन यह यात्रा दोनों देशों के शीर्ष नेतृत्व को सीधे बातचीत का मौका देगी. उम्मीद है कि पीएम मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के बीच द्विपक्षीय बैठक हो सकती है. जिससे सीमा पर तनाव कम करने और संवाद को फिर से स्थापित करने की प्रक्रिया में तेजी आ सकती है.
व्यापारिक संबंधों पर चर्चा: भारत और चीन के बीच व्यापारिक असंतुलन एक बड़ा मुद्दा रहा है. इस यात्रा के दौरान आर्थिक सहयोग और व्यापारिक मुद्दों पर चर्चा होने की संभावना है. विदेश मंत्री एस. जयशंकर की हाल की बीजिंग यात्रा में भी रेयर अर्थ आपूर्ति और उर्वरकों पर प्रतिबंधों जैसे व्यापारिक मुद्दों को उठाया गया था. यह यात्रा इन मुद्दों के समाधान की दिशा में महत्वपूर्ण साबित हो सकती है.
वैश्विक मंच पर भारत की भूमिका: एससीओ शिखर सम्मेलन में पीएम मोदी की उपस्थिति यूरेशिया में बहुपक्षीय कूटनीति के प्रति भारत की निरंतर प्रतिबद्धता का संकेत देती है. यह यात्रा भारत को क्षेत्रीय सुरक्षा, आतंकवाद और व्यापार सहयोग जैसे मुद्दों पर अपनी राय रखने का अवसर प्रदान करेगी.
हां, ट्रंप पर दबाव बढ़ाएगी ये यात्रा
पीएम मोदी का चीन दौरा विशेषकर शंघाई सहयोग संगठन जैसे मंच पर अमेरिका को यह साफ संदेश देता है कि भारत अपनी विदेश नीति में किसी एक खेमे तक सीमित नहीं है. भारत, अमेरिका के दबाव में आकर अपने राष्ट्रीय हितों से समझौता नहीं करेगा. यह यात्रा भारत की रणनीतिक स्वायत्तता को दर्शाती है, जिससे ट्रंप की ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति और व्यापारिक धमकियों के खिलाफ एक मजबूत रुख सामने आता है. पीएम मोदी की चीन यात्रा सीधे तौर पर ट्रंप पर दबाव बढ़ा सकती है. यह यात्रा भारत की स्वतंत्र विदेश नीति, बहुपक्षीय सहयोग को बढ़ावा देने और अमेरिकी दबाव के आगे न झुकने के रुख को दर्शाती है. यह स्थिति अमेरिका के लिए अपने भू-राजनीतिक और आर्थिक लक्ष्यों को प्राप्त करने में चुनौती पैदा कर सकती है.
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