
तिरुअनंतपुरम
मंदिर का पुजारी किसी खास जाति या फिर वंश से जुड़ा व्यक्ति होगा, यह धर्म सम्मत नहीं है। केरल हाई कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई करते हुए यह बात कही है। अदालत ने कहा कि यह हिंदू धर्म के ग्रंथों में कहीं भी वर्णित नहीं है कि किसी विशेष जाति का शख्स ही मंदिर का पुजारी हो सकता है या फिर किसी वंश का व्यक्ति ही बन सकता है। यदि कोई ऐसा चाहता है कि किसी खास जाति के लोग ही मंदिर के पुजारी हों तो उसे संविधान से भी कोई संरक्षण नहीं मिल सकता। जस्टिस राजा विजयराघवन और जस्टिस केवी जयकुमार ने त्रावणकोर देवस्वम बोर्ड और केरल देवस्वम रिक्रूटमेंट बोर्ड की ओर से सिर्फ तंत्र विद्यालयों की ओर से अनुभव प्रमाण पत्र रखने वालों की भर्ती पर यह बात कही।
केरल में अखिल केरल तंत्री समाजम नाम की एक सोसायटी है। इस सोसायटी से जुड़े करीब 300 परंपरागत तंत्री परिवार जुड़े हैं। यह स्कूल सिखाता है कि कैसे मंदिरों में पुजारियों को परंपराओं का निर्वाह करना चाहिए और पूजा करानी चाहिए। इसी को लेकर अर्जी दाखिल हुई थी कि आखिर किसी एक खास स्कूल या वंश परंपरा से निकले लोगों को ही पुजारी के रूप में कैसे भर्ती किया जा सकता है। अर्जी में सवाल उठाया गया कि आखिर यह मांग कैसे की जा सकती है कि किसी खास स्कूल से आपकी डिग्री होगी, तभी आपको पुजारी के रूप में भर्ती किया जाएगा।
इस पर अदालत ने कहा है कि हिंदू धर्म में ऐसी कोई परंपरा या विधान नहीं है कि किसी जाति या वंश से जुड़े लोगों को ही मंदिर के पुजारी के रूप में भर्ती किया जाएगा। बेंच ने इस दौरान 1972 के सुप्रीम कोर्ट के सेशम्मल बनाम तमिलनाडु केस के फैसले का भी उदाहरण दिया। बेंच ने कहा कि तब अदालत ने कहा था कि अर्चक यानी मंदिर के पुजारियों की भर्ती एक सेकुलर निर्णय होता है। इसमें धर्म का कोई मसला नहीं होता और यह काम ट्रस्टी की ओर से किया जाता है। दरअसल सवाल यह भी उठा था कि जिस सोसायटी की डिग्रियों की बात की जा रही है, उसमें पढ़ने वाले तो सिर्फ ब्राह्मण हैं। इसलिए सभी को मौका देने के यह नियम खिलाफ है।
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