
मुंबई
लगभग 25 साल पहले माइक्रोसॉफ्ट ने अपने पर्सनल कंप्यूटर मार्केट के दबदबे का इस्तेमाल करके लोगों को इंटरनेट एक्सप्लोरर (Internet Explorer) इस्तेमाल करने के लिए मजबूर किया था. इस कदम पर तब एक बड़ा एंटीट्रस्ट (प्रतिस्पर्धा-विरोधी) मुकदमा हुआ, जिसमें हार के बाद माइक्रोसॉफ्ट को लंबे समय तक नुकसान झेलना पड़ा. अब, सीईओ सत्य नडेला की आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) स्ट्रेटजी के साथ यह कंपनी फिर से टेक वर्ल्ड के टॉप पर है. लेकिन ये बात गूगल को पसंद नहीं. इस बार गूगल कोशिश कर रहा है कि माइक्रोसॉफ्ट को फिर से वैसा ही अनुभव हो, जैसा 90 के दशक में हुआ था. दो बड़े टेक दिग्गजों के बीच यह लड़ाई क्यों है और दोनों कंपनियां अपना दबदबा कायम रखने के लिए क्या-क्या कर रही हैं? कहानी दिलचस्प है.
गूगल इस समय ब्राउजर चॉइस अलायंस (BCA) नामक एक इंडस्ट्री ग्रुप को फंड कर रहा है. इसमें ओपेरा, विवाल्डी और अन्य छोटे ब्राउजर बनाने वाली कंपनियां शामिल हैं. इसका मकसद माइक्रोसॉफ्ट पर दबाव बनाना है. आरोप है कि माइक्रोसॉफ्ट फिर से अपने विंडोज ऑपरेटिंग सिस्टम का इस्तेमाल अपने ब्राउजर को बढ़ावा देने के लिए कर रहा है, जिससे बाकी ब्राउजरों को बराबरी का मौका नहीं मिल पा रहा.
BCA के कई सदस्य हैं, लेकिन गूगल सबसे बड़ा वित्तीय सहयोगी है. यह हैरानी की बात नहीं है, क्योंकि ब्राउजर मार्केट शेयर गूगल के लिए बेहद अहम है. अगर माइक्रोसॉफ्ट का नया ब्राउजर सबसे लोकप्रिय AI ब्राउजर बन जाता है, तो गूगल का सर्च इंजन मार्केट में बड़ा हिस्सा खो सकता है. गूगल का कहना है कि उसे माइक्रोसॉफ्ट के उन “डार्क पैटर्न्स” से दिक्कत है, जो विंडोज यूजर्स को अपना पसंदीदा ब्राउजर इस्तेमाल करने से रोकते हैं.
डेस्कटॉप पर AI की जंग
AI के बढ़ते दौर में डेस्कटॉप (या लैपटॉप) एक बड़ा युद्धक्षेत्र बन गया है. भले ही स्मार्टफोन रोजमर्रा में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होते हैं, लेकिन असली काम के लिए लोग डेस्कटॉप का ही सहारा लेते हैं. यही कारण है कि माइक्रोसॉफ्ट अपने ब्राउजर में कई नए फीचर्स जोड़ रहा है और AI-पावर्ड “कोपायलट” असिस्टेंट भी शामिल कर चुका है, जो यूजर के टैब्स संभालने से लेकर कई काम ऑटोमैटिक कर सकता है.
BCA का आरोप है कि माइक्रोसॉफ्ट यूजर्स को Edge ब्राउजर छोड़ने में मुश्किलें खड़ी करता है, जैसे कि नया ब्राउजर डाउनलोड करते समय सुरक्षा चेतावनी देना, या सेटिंग बदलने के बाद फिर से Edge को डिफॉल्ट बना देना.
यूरोप और ब्राजील में कानूनी दबाव
यूरोप में इस अलायंस ने रेगुलेटर्स से शिकायत की है कि माइक्रोसॉफ्ट नए प्रतिस्पर्धा कानूनों का पूरी तरह पालन नहीं कर रहा. BCA के सदस्य ओपेरा ने ब्राजील की एजेंसी में भी शिकायत दर्ज की है, जिसमें कहा गया है कि माइक्रोसॉफ्ट के कदम यूजर्स को परेशान करने वाले और अनुचित हैं.
दिलचस्प बात यह है कि गूगल पर भी पहले अपने ब्राउजर को बढ़ावा देने के आरोप लगे थे. फिर भी, आज गूगल और BCA के अन्य सदस्य मानते हैं कि अगर प्रतिस्पर्धा सही ढंग से हो, तो इसका फायदा टेक इंडस्ट्री और यूजर्स दोनों को होगा.
कभी राजा हुआ करता था इंटरनेट एक्सप्लोरर
माइक्रोसॉफ्ट का इंटरनेट एक्सप्लोरर (IE) 1990 के दशक के अंत और 2000 के दशक की शुरुआत में ब्राउजिंग की दुनिया का राजा था. 1995 में लॉन्च होने के बाद IE ने विंडोज ऑपरेटिंग सिस्टम के साथ एकीकरण के कारण तेजी से लोकप्रियता हासिल की. 2002-03 तक, बाजार में इसकी हिस्सेदारी 95 फीसदी से अधिक थी, क्योंकि यह विंडोज के साथ डिफॉल्ट ब्राउजर के रूप में आता था.
सन् 2000 के मध्य में इंटरनेट एक्सप्लोरर का पतन शुरू हुआ. कोई नया इनोवेशन नहीं करना, सिक्योरिटी से समझौता, और पुराने वेब स्टैंडर्ड्स ने यूजर्स को निराश किया. मोजिला फायरफ़ॉक्स (2004) ने फास्ट और सिक्योर ब्राउजिंग एक्सपीरिएंस देकर IE को चुनौती दी. फिर, 2008 में गूगल क्रोम के लॉन्च ने खेल बदल दिया. क्रोम की स्पीड, शानदार और कसीला डिजाइन, और डेवलपर के लिए तमाम सुविधाओं ने इसे तुरंत हिट बनाया. गूगल के मजबूत मार्केटिंग और क्रॉस-प्लेटफॉर्म सपोर्ट ने इसे बढ़ावा दिया. 2012 तक क्रोम ने IE को पछाड़ दिया और वह ब्राउजिंग मार्केट का राजा बन गया. आज, क्रोम की वैश्विक हिस्सेदारी 60 फीसदी से अधिक है.
2024-25 में माइक्रोसॉफ्ट ने AI को लपकने में देरी नहीं की. इसके बूते एक बार फिर वह धीरे-धीरे पॉपुलर हो रहा है. ज्यादातर पर्सनल कंप्यूटरों पर माइक्रोसॉफ्ट विंडोज होने की वजह से कंपनी के लिए कुछ आसानी जरूरी है कि वह वापसी कर पाए, लेकिन गूगल ने BCA बनाकर उसे परेशानी में डाल दिया है. यह जंग कहां तक जाएगी और इसका क्या अंजाम होगा, यह देखना काफी दिलचस्प रहेगा.
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