नई दिल्ली
भारत की रक्षा क्षमता में एक और माइलस्टोन जुड़ गया है। भारतीय सेना ने DRDO द्वारा तैयार किए गए ‘आकाश प्राइम’ एयर-डिफेंस सिस्टम का ऐसा परीक्षण किया जिसने वैश्विक सैन्य विशेषज्ञों का ध्यान अपनी ओर खींच लिया। यह वही प्रणाली है जिसने ऑपरेशन सिंदूर के दौरान अपने प्रदर्शन से कई देशों को चौंका दिया था। पहले ही अर्मेनिया इसके लिए भारत के साथ समझौता कर चुका है और अब तुर्की सहित कई अन्य देशों ने इसकी क्षमता को खुले तौर पर स्वीकार किया है। आकाश प्राइम को भारत की मौजूदा आकाश प्रणाली का अत्याधुनिक और उन्नत संस्करण माना जाता है। खास बात यह है कि यह शानदार प्रदर्शन अत्यंत कम लागत में स्वदेशी टेक्नोलॉजी के दम पर हासिल हुआ है- जो भारत के रक्षा-आत्मनिर्भरता मिशन की बड़ी उपलब्धि है।
लद्दाख में सफल टेस्ट-तेज़ रफ्तार लक्ष्य को 15,000 फीट की ऊंचाई पर मार गिराया
कठोर मौसम और मुश्किल पहाड़ी भूभाग में भारतीय सेना ने जब इसका परीक्षण किया, तो आकाश प्राइम ने तेज गति से उड़ रहे हवाई लक्ष्यों को ऊंची ऊंचाइयों पर सटीकता के साथ नेस्तनाबूद कर दिया। इस सफलता ने साफ कर दिया कि भारत के पास अब ऐसा एयर-डिफेंस सिस्टम मौजूद है जो ऊंचाई, मौसम या इलाके की चुनौती से ऊपर उठकर लगातार सटीक हमला कर सकता है। यह परीक्षण सिर्फ सैन्य क्षमता का संकेत नहीं, बल्कि भारतीय रक्षा उद्योग की बढ़ती ताकत और वैश्विक बाजार में उसकी बड़ी भूमिका का इशारा भी देता है।
हर मौसम में सटीक हमला-नई RF तकनीक ने बनाई इसे और घातक
-आकाश प्राइम को एक उन्नत रेडियो फ्रीक्वेंसी सीकर से लैस किया गया है। इस तकनीक से:-
-बारिश, धुंध, बर्फबारी या गरमी-किसी भी मौसम में इसका प्रदर्शन नहीं बदलता
-ऊबड़-खाबड़, पहाड़ी या रेतीले इलाके-हर भूभाग में लक्ष्य भेदने की क्षमता बनी रहती है
हवा में तेजी से बदलते टारगेट का पीछा कर सटीक वार कर सकता है
-यह संस्करण अब भारतीय सेना के तीसरे और चौथे आकाश रेजिमेंट में शामिल होने जा रहा है, जिससे वायु सुरक्षा और भी मजबूत होगी।
-सीमा पर चीन और पाकिस्तान की आक्रामक रणनीतियों को देखते हुए यह सिस्टम भारत के रक्षा कवच को एक नई धार देता है।
कम कीमत, उच्च गुणवत्ता-भारत की मिसाइल तकनीक दुनिया को चौंका रही
सरकार ने आकाश प्राइम की प्रति-यूनिट कीमत का आधिकारिक खुलासा नहीं किया है, लेकिन यह साफ है कि इसका विकास पूरी तरह स्वदेशी तकनीक पर आधारित है, जिसके कारण इसकी लागत अंतरराष्ट्रीय बाज़ार में उपलब्ध समान प्रणालियों के मुकाबले बेहद कम है। कुछ अनुमान बताते हैं कि पूरी आकाश प्रणाली को तैयार करने में लगभग 1,000 करोड़ रुपये का खर्च आया-जबकि कई देशों में इस श्रेणी की मिसाइलों पर भारत की तुलना में 8–10 गुना अधिक लागत आती है।

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